कितना अज़ीब अपनी ज़िन्दगी का सफर निकला
कितना अज़ीब अपनी
ज़िन्दगी का सफर
निकला,
सारे जहाँ का
दर्द अपना मुक़द्दर
निकला,
जिसके नाम अपनी
ज़िन्दगी का हर
ईंहा कर दिया
अफ़सोस वही हमारी
चाहत से बेखबर
निकला
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